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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2678
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना पद्धति का मूल्याँकन कीजिए।

अथवा
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना के क्षेत्र में योगदान पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर -

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी इस युग के प्रमुख आलोचक हैं। शुक्ल जी की भाँति इन्होंने भी आधुनिक आलोचना साहित्य को अपनी कृतियों एवं प्रेरणा से बहुत प्रभावित किया है। अपनी पैनी दृष्टि, मौलिक सूझ, वैज्ञानिक विवेचन, प्रभावकारी शैली से युक्त होकर पाठकों तक अपनी अमिट छाप छोड़ जाती हैं। कबीर, हिन्दी साहित्य की भूमिका, मध्यकालीन धर्म साधना आदि आपकी आलोचना की उत्कृष्ट पुस्तके हैं। इनसे हम स्पष्ट देखते हैं कि विद्वान, आलोचक द्विवेदी जी का महान व्यक्तित्व युग की आलोचना को रूप देने का प्रयत्न कर रहा है।

कवि अथवा पुस्तक के विवेचन में द्विवेदी जी ने साहित्य तथा समाज के घनिष्ठ सम्बन्ध को दृष्टिपथ में रखा है। कबीर के क्रान्तिकारी व्यक्तित्व का उन्होंने सुन्दर विश्लेषण किया है और कबीर की विविध रूपी परिस्थितियों का विवेचन करके उनके व्यक्तित्व की भावनाओं को स्पष्ट किया है। कबीर का इतना क्रान्तिकारी व्यक्तित्व क्यों है क्योंकि द्विवेदी जी के शब्दों में "कबीर परस्पर विरोधी कोटियों के मिलन बिन्दु पर खड़े थे, जहाँ से एक ओर हिन्दुत्व निकल जाता है और दूसरी ओर मुसलमानत्व, जहाँ एक ओर ज्ञान निकल जाता है दूसरी ओर अशिक्षा, जहाँ एक तरफ निर्गुण मावना निकल जाती है दूसरी ओर भक्ति मार्ग, जहाँ प्रशस्त चौराहे पर वे खड़े थे। वे दोनों ओर देख सकते थे और परस्पर विरोधी दिशाओं में गये हुए मार्गों के गुण-दोष उन्हें दिखाई दे जाते थे।' इन्हीं भगवद्दत्त परिस्थितियों के कारण कबीर युग प्रवर्त्तन कर सकते थे। इस प्रकार अपनी 'मध्यकालीन धर्म साधना' में आचार्य द्विवेदी जी ने मध्यकालीन धर्म साधना और साहित्य का निरूपण करने से अपूर्व कुशलता दिखाई है। उनके 'हिन्दी कविता' नामक समीक्षात्मक लेख में भी इस प्रवृत्ति का परिचय मिलता है।

डॉ. रामेश्वरलाल खण्डेलवाल जी के शब्दों में, "आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी - हिन्दी के मूर्द्धन्य आलोचकों में से हैं। अपनी नितान्त मौलिक समीक्षा-दृष्टि, प्रगाढ़ जीवनावस्था, विशद मानव सहानुभूति व स्वच्छन्द प्रतिपाद शैली के कारण वे शुक्लोत्तर युग हिन्दी समीक्षा के क्षेत्र में अनूठी महिमा से समन्वित होकर प्रतिष्ठित हैं। उनकी समीक्षा दृष्टि आचार्य शुक्ल की, लोकमंगल की दृष्टि का प्रायः विशद व्याख्यान कही जा सकती है। जीवन-तत्व की गवेषणा का व्याख्यान में द्विवेदी जी की गहरी रुचि व प्रीति है। इस तत्व-बोध में उनके भीतर का जिज्ञासु रूप पूरा-पूरा खिला है। जीवन-तत्व की उनकी उक्त जिज्ञासा कोरी 'ऐकेडेमिक' नहीं है। वह मानव-समाज व संस्कृति को और उनके पारस्परिक अन्तःसूत्रों को समझने में सहायक हुई है। मानव को समझने का उनका प्रयास इतना हार्दिक है कि उसकी चरम परिणति में द्विवेदी जी साहित्य में मानवतावादी मूल्यों के एक शीर्षस्थ उन्नायक के रूप में अतुलनीय समझे जाते हैं। उनके सामने संस्कृति का एक अत्यन्त ही व्यापक रूप है। स्वयं साहित्य भी, जिसे हम प्रायः आत्म-पर्यवसित वस्तु मान बैठते हैं, उनकी दृष्टि में संस्कृति का ही एक रूप अभिव्यक्ति या शैली है। इसीलिए वे साहित्यिक असाहित्यिक की ज्यादा छँटनी करने के पक्ष में नहीं दिखाई पड़ते। जो कुछ भी सांस्कृतिक व मानवीय महत्व में गर्भित है, वह सब कुछ उच्चकोटि की हार्दिकता से प्रेरित शैली में विन्यस्त होने पुर कलात्मक साहित्य ही है। द्विवेदी जी की मूल दृष्टि मानवतावादी ही है। वर्ग-भेद को प्रश्रय देने वाली समाजशास्त्रीय दृष्टि से उनकी मानवीय सांस्कृतिक समाजशास्त्रीय दृष्टि सहज ही पृथक करके देखी जा सकती है। द्विवेदी जी के समीक्षा निष्कर्ष के निर्माण में जीवन-तत्व, मानवता संस्कृति व समाज-विषयक चिन्तन का पूरा-पूरा समावेश है। उच्च साहित्यिक गुणों के अतिरिक्त व्यापक मानव-संवेदना, जीवनावस्था, उच्च मूल्यों के प्रति गहरी निष्ठा, जीवन-स्वीकृति, दृढ़ता- स्पष्टता, उत्कृष्ट आशा, सहज औदार्य आदि व्यक्तिगत गुणों के रस में पगी उनकी उक्त व्याख्या अत्यन्त महिमाशालिनी बन गयी है।'

उनकी गन्वेषणात्मक कृतियाँ - इधर द्विवेदी जी ने गवेषणात्मक कार्य भी किया है जो विशेष महत्वपूर्ण है। इन्होंने 'हिन्दी साहित्य के आदिकाल के अन्धकारपूर्ण प्रकोष्ठ को अपनी गवेषणात्मक आलोचना से प्रकाशित कर दिया है और इस प्रकार हिन्दी आलोचना को एक नवीन शिक्षा दी। अब तक आलोचना ने सम्वत् 1050 से सम्वत् 1375 के साहित्य रचनाकाल को वीरगाथाकाल नाम दे रखा था और इसी के आधार पर उस काल के साहित्य का अध्ययन होता था। द्विवेदी जी ने आदिकालीन साहित्य के सम्बन्ध में फैली इस भ्रान्ति का निराकरण करके आदिकाल की विविध प्रवृत्तियों का दिग्दर्शन कराया और अब विद्वान् आलोचक आदिकाल में और अधिक नूतनता ढूँढने को अग्रसर हैं। इसी प्रकार द्विवेदी जी ने 'नाथ सम्प्रदाय' में नाथ पंथ की मान्यताओं को शास्त्रीय विवेचन करके गवेषणा के कार्य को विशेष योग दिया है। द्विवेदी जी का नूतन प्रयास 'हिन्दी साहित्य : उसका उद्भव और विकास' नामक हिन्दी साहित्य का इतिहास है जिसमें पं0 रामचन्द्र शुक्ल के कार्य को आगे बढ़ाया है। इस ग्रन्थ में भी द्विवेदी जी की सांस्कृतिक अथवा सौष्ठवादी आलोचना शैली है जो शुक्ल जी की व्यावहारिक आलोचना शैली का विकास है और मनोवैज्ञानिक दृष्टि को लेकर आती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आलोचना को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकासक्रम में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना पद्धति का मूल्याँकन कीजिए।
  5. प्रश्न- डॉ. नगेन्द्र एवं हिन्दी आलोचना पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- नयी आलोचना या नई समीक्षा विषय पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन आलोचना पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- द्विवेदी युगीन आलोचना पद्धति का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- आलोचना के क्षेत्र में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- नन्द दुलारे वाजपेयी के आलोचना ग्रन्थों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दी आलोचना के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- पाश्चात्य साहित्यलोचन और हिन्दी आलोचना के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- आधुनिक काल पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  17. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख भर कीजिए।
  21. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के व्यक्तित्ववादी दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद कृत्रिमता से मुक्ति का आग्रही है इस पर विचार करते हुए उसकी सौन्दर्यानुभूति पर टिप्णी लिखिए।
  23. प्रश्न- स्वच्छंदतावादी काव्य कल्पना के प्राचुर्य एवं लोक कल्याण की भावना से युक्त है विचार कीजिए।
  24. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद में 'अभ्दुत तत्त्व' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इस कथन कि 'स्वच्छंदतावादी विचारधारा राष्ट्र प्रेम को महत्व देती है' पर अपना मत प्रकट कीजिए।
  25. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद यथार्थ जगत से पलायन का आग्रही है तथा स्वः दुःखानुभूति के वर्णन पर बल देता है, विचार कीजिए।
  26. प्रश्न- 'स्वच्छंदतावाद प्रचलित मान्यताओं के प्रति विद्रोह करते हुए आत्माभिव्यक्ति तथा प्रकृति के प्रति अनुराग के चित्रण को महत्व देता है। विचार कीजिए।
  27. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- कार्लमार्क्स की किस रचना में मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उनके द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर एक टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद को समझाइए।
  31. प्रश्न- मार्क्स के साहित्य एवं कला सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- साहित्य समीक्षा के सन्दर्भ में मार्क्सवाद की कतिपय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
  33. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- मनोविश्लेषणवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  35. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  36. प्रश्न- समकालीन समीक्षा मनोविश्लेषणवादी समीक्षा से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  38. प्रश्न- मार्क्सवाद का साहित्य के प्रति क्या दृष्टिकण है? इसे स्पष्ट करते हुए शैली उसकी धारणाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- मार्क्सवादी साहित्य के मूल्याँकन का आधार स्पष्ट करते हुए साहित्य की सामाजिक उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- "साहित्य सामाजिक चेतना का प्रतिफल है" इस कथन पर विचार करते हुए सर्वहारा के प्रति मार्क्सवाद की धारणा पर प्रकाश डालिए।
  41. प्रश्न- मार्क्सवाद सामाजिक यथार्थ को साहित्य का विषय बनाता है इस पर विचार करते हुए काव्य रूप के सम्बन्ध में उसकी धारणा पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- मार्क्सवादी समीक्षा पर टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- कला एवं कलाकार की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की क्या मान्यता है?
  44. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  45. प्रश्न- आधुनिक समीक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- 'समीक्षा के नये प्रतिमान' अथवा 'साहित्य के नवीन प्रतिमानों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  47. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- मार्क्सवादी आलोचकों का ऐतिहासिक आलोचना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
  49. प्रश्न- हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना का आरम्भ कहाँ से हुआ?
  50. प्रश्न- आधुनिककाल में ऐतिहासिक आलोचना की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उसके विकास क्रम को निरूपित कीजिए।
  51. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सैद्धान्तिक दृष्टिकोण व व्यवहारिक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- शुक्लोत्तर हिन्दी आलोचना एवं स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  55. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में नन्ददुलारे बाजपेयी के योगदान का मूल्याकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  56. प्रश्न- हिन्दी आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी आलोचना के विकास में योगदान उनकी कृतियों के आधार पर कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. नगेन्द्र के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  58. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. रामविलास शर्मा के योगदान बताइए।

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